महाराजजी "हम" जैसे नहीं थे

महाराजजी "हम" जैसे नहीं थे l महाराजजी हमारी तरह नहीं सोचते थे l महाराजजी हमारी तरह बर्ताव नहीं किया करते थे l महाराजजी हमारी तरह प्रतिक्रिया नहीं करते थे l जिस तरह हम चीज़ें करते हैं, महाराजजी उस तरह चीज़ें नहीं किया करते थे l महाराजजी उस समय अंतरिक्ष सातत्य में नहीं थे जिसमें हम हैं l यह कहा जा सकता है कि महाराजजी मनुष्य नहीं थे/हैं l वह एक मानव शरीर रूप में अवतरित हुए जिसे हम नीम करौली बाबा के नाम से जानते हैं l उनके, हम सबकी तरह हाथ, पैर, आँख और कान थे l उनके श्रद्धेय और अतिप्रिय कमल चरण थे - कमलपद इसका क्या मतलब है? यह कैसे संभव है? यह लगभग समझ से बाहर है। यही महाराजजी हैं l  यही महाराजजी को गहरे अध्ययन और चिंतन के योग्य बनाता है ।  उनके प्रति अपनी समझ से प्रेम तथा भक्ति का झुकाव एक एहसास विकसित करने लगता है l

दादा ने महाराजजी के बारे में यह लिखा था, "हम सब जानते हैं कि बाबाजी मानव  रूप और आकार में एक मनुष्य थे l लेकिन यदि हम अपना ध्यान केवल शरीर तक सीमित रखेंगे तो हम उन्हें नहीं समझ सकते l  हम यह देखते हैं कि मनुष्य की काया के साथ भी उनमें  वह ऊर्जा थी, वह शक्ति थी, वह प्यार और स्नेह था जो  कि एक इंसान में नहीं होता l  इतिहास में महानतम मनुष्यों के विषय में  हम पढ़ते हैं, बेशक उन्होंने बहुत कुछ हासिल किया है l लेकिन जो बाबा जी या उनके जैसे संत ने हासिल किया, वह निश्चित रूप से किसी मनुष्य की क्षमता से बाहर था l यदि ऐसा है तो हम निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि मानव शरीर में कोई ऐसी शक्ति या प्रभुत्व है जो मानवीय नहीं है l”

माताजी ने कहा कि जब किसी को पूर्ण ज्ञान हो जाता है कि महाराजजी कौन हैं तो वह अपने अस्तित्व की गहराई तक हिल जाता है l कुछ लोगों के लिए यह पागलपन का एक रूप हो सकता है क्योंकि वं इस बात को नहीं समझ सकते कि क्या हो रहा है तथा वे वास्विकता पर अपनी पकड़ खो सकते हैं l ऐसा इसलिए है कि मानव जीवन में ऐसा कुछ भी नहीं है जो किसी को यह समझा सके या प्रशिक्षित कर सके  कि महाराजजी जैसी विभूति पृथ्वी पर हमारे बीच मौजूद है l